..तो क्या इसे कहते हैं अभिव्यक्ति की आजादी
सबसे तेज न्यूज ब्यूरो
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आज़ादी...एक ऐसी मुहिम जिसके लिये हमारे कितने ही देशभक्त शहीद हो गये ताकि देश उस मुकाम पर आ सके जहाँ हम शासकों से लङने की बजाय, आज़ादी के लिये संघर्ष करने की बजाय देश के विकास के लिये काम कर सकें, अपने ही देश में उच्च शिक्षा प्राप्त कर देश को विश्व भर में एक नई पहचान दिला सकें तथा किसी भी विषम परिस्थिति में आपस में लङने की बजाय एकजुट होकर उन अराजक तत्वों के विरोध में खङे हों जो हमारे देश को तोङना चाहते हों, हमारे देश के संविधान को लचिला बनाया गया ताकि सालों से गुलामी की बेङ़ियों में जकड़े हुए देशवासी स्वयं को पुर्णतया स्वतंत्र महसूस कर सकें .....लेकिन क्या कभी भी इतने संघर्षों के बाद मिली आज़ादी का यह मतलब था कि आज़ादी के नाम पर हम पुरे देश की भावनाओं को आघात पंहुचायें ? जी हाँ मैं बात कर रहीं हूँ "अभिव्यक्ति की आज़ादी" की....जो आज कल बङे ज़ोरों से प्रचलन में है। कारगिल युद्ध में हुए एक शहीद की बेटी गुरमेहर कौर जिसके एक वक्तव्य ने पूरे देश को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सन्देह करा दिया । मैं इस बात में उलझना ही नहीं चाहती कि गुरमेहर का बयान सही था या गलत.....मैं बस ये जानना चाहती हूँ कि क्या मीडिया में वाक़ई इस बात को इतनी अहमियत मिलनी चाहिये थी? ये तो सब मानते हैं कि छात्र संगठनों द्वारा एक लङकी को रेप की धमकी देना गलत था लेकिन क्या ये सही नहीं होता कि गुरमेहर एक पुसिस कम्पलेन करतीं अौर धमकी देने वालों पर पुलिस कार्यवाही करती, हमारे देश का कानून उन्हें सज़ा देता , क्या मीडिया इसे सिर्फ एक न्यूज़ की तरह इसे नहीं दिख़ा सकता था, क्या इस मुद्दे पे न्यूज़ चैनल्स पे बङी-बङी बहस होना ज़रुरी था? मैं 20 वर्ष की गुरमेहर या छात्र संगठनों से जुङे छात्रों की बजाय अपने देश के ज़िम्मेदार एवं परिपक्व मीडिया की सुझ-बुझ की बात करना चाहती हूँ । क्या हमारे मीडिया को सकारात्मकता की बजाय नकारात्मकता ज़्यादा पसंद है , क्या मीडिया के लिए देश की छवि से ज़्यादा महत्वपूर्ण टी.आर.पी. है, क्या आपको नहीं लगता कि यदि मीडिया ने इस बात को इतना महत्व ना दिया होता तो शायद आज एक बेतुके से बयान इतनी अहमियत ना मिलती? क्या आपको नहीं लगता कि ख़बर ऐसी हो जो हमारे देश तथा देशवासियों के हित में हो, जो हमारे देश की अखंडता, देशवासियों की प्रतिभा एवं देश की तरक्की को दिखा सके ? ऐसी रिपोर्टिंग किस काम की जिससे देश में सिर्फ विरोध की उत्पत्ति हो, जो काॅलेज छात्रों को क्लासरूम से निकालकर सङकों पर ला दे और जो पूरे विश्व को भारत की एकता की बजाय देश की अनेकता को दिखाये ,जो ये दिखाये की आज़ादी के 70 वर्षों बाद आज भी हम आज़ादी की लङाई ही लङ रहें हैं । हमारा देश युवाओं का देश है अब आपको ही यह सुनिश्चित करना होगा कि आप कुछ स्वार्थी लोगों द्वारा भङकाई गई आग में घी का काम करके महज़ कुछ दिनों के लिये सुर्खियों में रहना चाहते हैं या पानी की तरह उस आग को शान्त कर विश्व भर में ये सन्देश देना चाहते हैं कि भारत के युवा सिर्फ जोश और मौज में ही नहीं बल्कि शान्त और समझदार भी हैं । अब हमें यह तय करना होगा कि क्या वाकई हम युवा देश का नेतृत्व करने के लिये तैयार हैं, या ऐसे ही तर्कहीन बातों पर अपना अमुल्य समय एवं देश का माहौल ख़राब करना चाहते हैं ।
लेखिका अर्चना दूबे स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। वर्तमान में शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। लेखिका का यह स्वंय का विचार है।
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