गुणवत्ता के मामले में भारत ने चीन को पछाड़ा
सस्ते भी, दिखने में आकर्षक भी है, बाजारों में आसानी से मिल भी जाते हैं। घर में लगाओ तो घर जगमगा उठते है। कम कीमत होने के कारण शायद ही लोग चीनी सामान खरीदने से पहले नहीं सोचते है। भारत हो या फिर अन्य देश चीनी सामानों की हर जगह मांग ज्यादा है क्योंकि पैसे कम खर्च करने पर भी आपको उत्पाद मिल जाता है, लेकिन पैसो को दर किनार करके उत्पाद की क्वालिटी की बात आ जाती है तो चीनी उत्पाद, भारतीय उत्पाद के आगे फेल हो जाते हैं। क्योंकि भारतीय उत्पाद चीन के सामान के मुकाबले थोड़े महंगे जरूर हैं पर भरोसे पर खरा उतरते हैं। इस बात को सिर्फ भारत के लोग ही नहीं मान रहे बल्कि भारतीय उत्पादों का लोहा अब दुनिया मानने लगी है। सोमवार को यूरोपीय संघ की ओर से एक रिपोर्ट जारी की गई है जो चीनी और भारतीय उत्पादों में फर्क दिखाने के लिए काफी है। 49 देशों को लेकर किए गए एक सर्वेक्षण में भारत को 36 अंक दिए गए है जबकि पड़ोसी मुल्क चीन को 28 अंको से संतुष्टि करनी पड़ी है। ये आंकड़े अपने आप में भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता जाहिर करने में काफी हैं। चीनी सामानों की कलई खुल चुकी है क्योंकि उसके पास संसाधन सीमित हैं और सीमित उपलब्धता के कारण वो विनिर्माण में घटिया सामान का इस्तेमाल करता है जाहिर सी बात है जिस पेड़ की नींव खराब होगी अगर वो ऊपर से देखने में हरा-भरा भी हो जाएगा पर उस पर उगने वाला फल कभी अच्छा कैसे हो सकता है। विनिर्माण घटिया चीजों से करने के बाद कम से कम मजदूरी के बूते चीन अतंर्राष्ट्रीय बाजारों में तो उतार दिया लेकिन उपभोक्ता एक बार इस्तेमाल करने के बाद जान चुका है कि आखिरकार सही क्या है। उपभोक्ता द्वारा दिए गए रिव्यू के बाद चीन की पोल दुनिया के सामने खुल चुकी है। उत्पादों की गुणवत्ता, सुरक्षा मानक, कीमत, भरोसा, टिकाऊपन और प्रतिष्ठा के आधार पर तय की गई रिपोर्ट में ज्यादातर लोगों ने यह माना है कि चीनी उत्पाद सस्ते तो है लेकिन भरोसेमंद नहीं है। सोमवार को पेश की गई इस रिपोर्ट में 43 हजार से ज्यादा उपभोक्ताओं ने हिस्सा लिया ये संख्या काफी है इस बात को बताने के लिए कि आखिरकार कौन से देश का प्रोडक्ट कितना सही है। इस रिपोर्ट के आने के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में चीन की शाख को धक्का लगा है जबकि भारत एक बार फिर से अपनी छवि को मजबूत करने में कामयाब रहा है। भारत को इस मुकाम तक लाने के लिए यहां के उत्पादों की गुणवत्ता की भूमिका तो अहम है ही साथ ही केंद्र की सत्ता पर महज 3 साल पहले कायम हुई मोदी सरकार भी है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा युवाओं की टेक्नोलजी प्रशिक्षण को बढ़ावा देने और तमाम योजनाओं के कारण ही आज भारत वहां पर पहुंच चुका है कि वो पन्नडुब्बी से लेकर सेटेलाइट तक खुद बना सकता है वो भी निर्यात की आधी कीमत पर। इससे ना सिर्फ भारत का पैसा बचा है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वो एक नई पहचान बनने में कामयाब हुआ है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है मोदी द्वारा चलाई जा रही ‘मेक इन इंडिया’ स्कीम के तरह 2014 में देशी कंपनियों द्वारा निर्मित मंगलयान मंगल की कक्षा में पहले प्रयास में स्थापित करने में भारत दुनिया का पहला और एकमात्र देश बन गया है।
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