साल के 18 दिन नारी के नाम बाकि के दिन क्यों नहीं...?
परंपराओं के देश भारत में वर्ष में दो बार नवरात्र मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। चैत्र और शारदीय नवरात्रें। हर कोई जानता हैं कि इन 18 दिनों में कन्या को इस तरह से पूजा जाता हैं जैसे ही उनके बिना जीवन की कल्पना कर पाना भी किसी शख्स के लिए बेहद ही मुश्किल कार्य हो, जो कि 100 प्रतिशत सत्य भी है। स्त्री के बिना कल्पना की शक्ति रख पाना भी किसी के बस की नहीं है, वो जननी है तभी तो संसार कायम है। 18 दिन की पूजा के दौरान हम कन्या भोजन के वक्त लड़कियों को इस तरह से ढूढ़ते हैं जैसे मानों उनको भोजन कराने से माता सच में प्रसन्न हो ही जाएंगी। मगर कोख में बेटी को मारते वक्त ये भूल जाते हैं कि बेटी होगी तभी कन्या आएंगी और आप उन्हें भोजन करा अपना व्रत पूरा कर सकोगे। भारत में 80 फीसदी महिलाओं को आज भी केवल एक वस्तु समान ही माना जाता है। घर का काम, ऑफिस का काम और फिर अंत में...। कुछ क्षेत्रों में बेशक महिलाओं ने बराबरी कर ली हो, कुछ में पुरूषों के मुकाबले आगे भी चल रही हों। मगर हालातों में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है। नौ दिनों के दौरान बेशक कन्याओं के चरणों की वंदना की जाती हो, चंदन-तिलक लगाकर उन्हें भोग लगाया जाता हो लेकिन बाकि कि 300 से ज्यादा दिन उन्हें सिर्फ इस्तेमाल किया जाता है। विकास की ओर बढ़ रहे भारत में आज भी बुलंदियों की छूती महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं। कुछ मामलों में अपने बच्चों के कारण वो शांत रहती हैं और हिंसा को रोजाना में शामिल कामों की तरह लेती है। कुछ मामलों में माता-पिता दबा देते हैं तो कुछ में वो इसे एक समझौते की तरह ही लेती हैं। एक रिपोर्ट पर नजर डालें तो भारत में लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं। ये हालात उस वक्त हैं जब हम आधुनिक युग में प्रवेश कर रहे हैं। एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में 10 में से सिर्फ 6 केस की नजरों में आ पाते हैं। हालात दिनों दिन बद से बदत्तर होते जा रहे हैं। महिलाओं को जो तवज्जों मिलनी चाहिए थी वो ना तो कल मिली थी और ना ही पढ़े-लिखे युग में आज मिल रही है। माता की नौ दिन पूजा करने वाले लोग अगर सच में माता को प्रसन्न करना चाहते हैं तो बाकि के 300 दिन भी उनकी पूजा कीजिए। महिलाएं सिर्फ शारीरिक सुख का भोग करने, रसोई घर की शान के लिए नहीं बल्कि आपके सम्मान की आवश्यकता है। अगर वो ना हो तो जिस खानदान की आप दुहाई देते फिरते हैं वो ही खत्म हो जाए। आज के दौर में बेटियों का जन्म होना, उन्हें शिक्षित और आत्मनिर्भर करना उतना ही आवश्यक हैं जितना पानी पीना। पूजा करनी है तो किसी मूर्त की नहीं उस नारी की करो जिसने तुम्हें जन्म दिया और नौ माह तक तुम्हें अपने गर्भ में खून से सींचा। लेखिकाःआशु दास, वर्तमान समय में दिल्ली में पत्रकारिता से जुड़ी हुई हैं
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